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2 Dec 2022 · 1 min read

■ #ग़ज़ल / अक़्सर बनाता हूँ….!

■ अक़्सर बनाता हूँ…..!!
【प्रणय प्रभात】

★ अजब फ़ितरत है मेरी, मोम को पत्थर बनाता हूँ।
मैं कागज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ।।

★ तक़ाज़ा वक़्त का जैसा भी हो अपनी क़लम को मैं।
कभी मरहम बनाता हूँ कभी नश्तर बनाता हूँ।।

★ अगर तू बंदापरवर है तो मैं भी तेरा बंदा हूँ।
तू मेरा सर बनाता है मैं तेरा दर बनाता हूँ।।

★ कभी मुट्ठी में रुकता है किसी के नूर रोके से?
बड़ा पागल हूँ मैं भी रोशनी का घर बनाता हूँ।।

★ अँधेरा मुझसे लिपटा है चराग़ों के तले जैसा।
बरहना मैं ही रहता हूँ मैं ही चादर बनाता हूँ।।

★ ख़यालों की हवा यादों की बदली घेर लाती है।
यूँ सावन की घटा आँखों को मैं अक़्सर बनाता हूँ।।

★ किसी के पूछने पर कह दिया हँस कर शग़ल ल अपना।
ग़ज़ल के वास्ते तश्बीह के ज़ेवर बनाता हूँ।।

श्योपुर (मप्र)
8959493240

Language: Hindi
2 Likes · 47 Views
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