हम बुज़ुर्गों पर दुआओं के सिवा कुछ भी नहीं
जाने कितनी बार गढ़ी मूर्ति तेरी
मंज़िलों से गुमराह भी कर देते हैं कुछ लोग.!
रफ़्ता रफ़्ता (एक नई ग़ज़ल)
सारंग-कुंडलियाँ की समीक्षा
कोई चाहे तो पता पाए, मेरे दिल का भी
मेरे शहर बयाना में भाती भाती के लोग है
*लटका कर झोला कंधे पर, घूम रहे हैं मेले में (गीत)*