Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Mar 2023 · 1 min read

■ आज का शेर…

#आज_का_शेर
■ समय के साथ…
कुछ चेहरे समय के साथ पुराने ज़माने के श्वेत-श्याम चित्रों की तरह दिमाग़ से लगभग ग़ायब से हो जाते हैं। जिन्हें एक धुंधली सी आकृति के रूप में पहचान पाना आसान नहीं होता।
【प्रणय प्रभात】

Language: Hindi
1 Like · 57 Views
Join our official announcements group on Whatsapp & get all the major updates from Sahityapedia directly on Whatsapp.
You may also like:
*बीमारी न छुपाओ*
*बीमारी न छुपाओ*
Dushyant Kumar
दोहा -स्वागत
दोहा -स्वागत
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मकर राशि मे सूर्य का जाना
मकर राशि मे सूर्य का जाना
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मेरा जो प्रश्न है उसका जवाब है कि नहीं।
मेरा जो प्रश्न है उसका जवाब है कि नहीं।
सत्य कुमार प्रेमी
रोम-रोम में राम....
रोम-रोम में राम....
डॉ.सीमा अग्रवाल
#सुप्रभात
#सुप्रभात
आर.एस. 'प्रीतम'
Honesty ki very crucial step
Honesty ki very crucial step
Sakshi Tripathi
जाने कितने ख़त
जाने कितने ख़त
Ranjana Verma
खुद्दारी ( लघुकथा)
खुद्दारी ( लघुकथा)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
कसूर उनका नहीं मेरा ही था,
कसूर उनका नहीं मेरा ही था,
Vishal babu (vishu)
सारा रा रा
सारा रा रा
Sanjay
💐Prodigy Love-42💐
💐Prodigy Love-42💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
प्रणय 2
प्रणय 2
Ankita Patel
खुद पर यकीं
खुद पर यकीं
Satish Srijan
कोशी के वटवृक्ष
कोशी के वटवृक्ष
Shashi Dhar Kumar
मैं अपनी खूबसूरत दुनिया में
मैं अपनी खूबसूरत दुनिया में
ruby kumari
■ सूरते-हाल ■
■ सूरते-हाल ■
*Author प्रणय प्रभात*
लगा ले कोई भी रंग हमसें छुपने को
लगा ले कोई भी रंग हमसें छुपने को
Sonu sugandh
"प्रेम के पानी बिन"
Dr. Kishan tandon kranti
*हिंदुस्तान को रखना( मुक्तक )*
*हिंदुस्तान को रखना( मुक्तक )*
Ravi Prakash
*धूप में रक्त मेरा*
*धूप में रक्त मेरा*
सूर्यकांत द्विवेदी
मैंने साइकिल चलाते समय उसका भौतिक रूप समझा
मैंने साइकिल चलाते समय उसका भौतिक रूप समझा
Ms.Ankit Halke jha
इक चितेरा चांद पर से चित्र कितने भर रहा।
इक चितेरा चांद पर से चित्र कितने भर रहा।
umesh mehra
"सोच अपनी अपनी"
Dr Meenu Poonia
धर्म
धर्म
पंकज कुमार कर्ण
बचपन
बचपन
Dr. Seema Varma
इस बार फागुन में
इस बार फागुन में
Rashmi Sanjay
दिल की दहलीज पर कदमों के निशा आज भी है
दिल की दहलीज पर कदमों के निशा आज भी है
कवि दीपक बवेजा
लगता है आवारगी जाने लगी है अब,
लगता है आवारगी जाने लगी है अब,
Deepesh सहल
5
5"गांव की बुढ़िया मां"
राकेश चौरसिया
Loading...