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11 Dec 2021 · 1 min read

ਨਦੀ

********* ਨਦੀ ********
**********************

ਬਦਲਤੀ ਰਈ ਸ਼ਦੀ ਤੇ ਸ਼ਦੀ
ਬਹਿੰਦੀ ਰਈ ਹਮੇਸ਼ ਹੀ ਨਦੀ

ਜਿੰਨ੍ਹੇ ਮਰਜ਼ੀ ਆਏਂ ਹੋਣ ਮੌੜ
ਪਰ ਕਦੇ ਵੀ ਨੀ ਰੁਕਦੀ ਨਦੀ

ਪ੍ਰਵਤ ਪਹਾੜਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਨਿਕਲਦੀ
ਮੈਦਾਨਾ ਚ ਬਿਖਰਦੀ ਹੈ ਨਦੀ

ਦੁਨੀਆਦਾਰੀ ਦਾ ਸਾਰਾ ਗੰਦ
ਸਮੇਟ ਗੰਦੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਨਦੀ

ਹਵਾ ਤੋਂ ਵੀ ਤੇਜ ਹੋਂਦਾ ਹੈ ਵੇਗ
ਸਬ ਕੁਜ ਬਹਾ ਲੈ ਜਾਂਦੀ ਨਦੀ

ਜਿੰਨ੍ਹੇ ਮਰਜੀ ਲਾ ਲੈਣ ਨਾੱਕੇ
ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਬੰਦ ਹੋਂਦੀ ਹੈ ਨਦੀ

ਮਨਸੀਰਤ ਤਾਰਦੀ ਹੈ ਫੁੱਲਾਂ ਨੂੰ
ਨਿਰਮਲ ਪਵਿੱਤਰ ਹੋਂਦੀ ਨਦੀ
*********************
ਸੁਖਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਮਨਸੀਰਤ
ਖੇੜੀ ਰਾਓ ਵਾਲੀ (ਕੈਥਲ)

Language: Punjabi
263 Views
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