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13 Aug 2021 · 1 min read

।। श्रमिक ।।

श्रम की रोटी
सूखी है,
आंखें हरदम
सूखी है।

नहीं अट्टालिका,
नहीं बैंक में लाकर,
नहीं जीवन में
नौकर चाकर।

बस सपना
छत हो
सरों पर,
भूख मिटे,
तन ढके,
मुस्कान सदा रहे
अधरों पर।

सहृदयता रहे
दुत्कार नहीं,
अपनापन रहे
तिरस्कार नहीं।

सहानुभूति हो,
मन में सबके,
सबका जीवन
एक ही रब के।

प्रकृति प्रेम,
निर्धन धनवान,
सबको मिलता
एक समान।

हम क्यों बांटे
भेद करें,
अपनी गलतियों पर
खेल करें।

सभी जनों का
अपना महत्व है,
प्रकृति का यही
मूल तत्व है।
✍️ शिवपूजन यादव’सहज’
ग्राम पोस्ट रामपुरकठरवां लालगंज आजमगढ़ उत्तर प्रदेश।

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 325 Views
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