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27 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |

भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखो को चाहिए खाना,चारा नहीं |

सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता, यारा नहीं |

बात है कर्ण प्रिय,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |

देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |

सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता कहीं
वह अमृत वारि मीठा है खारा नहीं |

© कालीपद ‘प्रसाद’

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