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12 Aug 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
_212/212/212_

ज़िंदगी तब हँसाने लगी
जब समझ ख़ूब आने लगी//1

पाँव में शूल जब भी चुभा
फूल की याद छाने लगी//2

आपको देखकर यूँ लगा
ज़िंदगी गुनगुनाने लगी//3

हसरतें हो गई हैं जवां
आरज़ू गुल खिलाने लगी//4

हौसलों का सफ़र अब लगे
रूह आशा जगाने लगी//5

बात में वज़्न पैदा हुआ
जब ग़ज़ल प्रीत भाने लगी//6

रोशनी हो गई उस जगह
मुख जहाँ वो दिखाने लगी//7

गुम हुआ शौक़ में मैं कभी
हर घड़ी मुस्क़राने लगी//8

देख ‘प्रीतम’ ज़रा प्यार से
क्यों नज़र आज़माने लगी?//9

*#आर.एस. ‘प्रीतम’*
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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