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6 Oct 2016 · 1 min read

ग़ज़ल : सबसे ही अलग बात है…

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अपने लिए तलाश तो ईमानदार की.
भूले मगर वो राह हैं परवरदिगार की.

पढ़िए कुरआन-ए-पाक वफ़ा मुल्क से भी हो,
जेहाद हो खुदी से मगर बात प्यार की

रौंदा गया जमीन की जन्नत को बारहा
बारूद से उगेंगी क्या फसलें बहार की

कहते हैं जिसको ‘पाक’ उसी दिल में मैल है,
दुश्मन करे है बात कहां ऐतबार की

अपने को जोड़ते जो मुग़ल खानदान से
आदत पड़ी है उनको तभी लूट-मार की

इंसानियत को भूल नहीं राह तू भटक,
इब्लीस ले चुका है छुरी तेज धार की.

दिल में जगेगा प्यार तो खिल जायेगें कमल
पंजे में गर गुलाब तो सहना है खार की.

झिड़के मगर वो प्यार दे हर हाल में सनम
सबसे ही अलग बात है माँ के दुलार की

‘अम्बर’ को बेशुमार सितारे हैं चाहते,
उल्फत उसे ज़मीं से नज़र आर-पार की
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ग़ज़लकार: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
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