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8 Apr 2020 · 1 min read

@ग़ज़ल- वो शक़्ल मेरी देख बदहवास हो गयी…

वो शक़्ल मेरी देख बदहवास हो गयी।
जो पास देखा मुझको तो उदास हो गई।।

लो घर की मुर्गी घर में आज ख़ास हो गयी।।
थी कड़वी नीम जैसी वो मिठास हो गयी।।

बदलते वक़्त संग ये मिजाज़ मत बदल।
ख़ुदा ने अर्स फर्स
जो कल तलक बहू थी अब तो सास हो गयी।।

नकाब फेंक पज्जियों पे अब रुझान क्यों।
ये उर्यां ही अमीरों का लिबास हो गयी।।

तेरी निगाह खोजती थी मुझको ही सदा।
जो सामने रहे तो आसपास हो गयी।।

खरा है कौन ‘कल्प’ को पता चले नही।
दिया न इम्तिहान फिर भी पास हो गयी।।

By:-अरविंद राजपूत ‘कल्प’
121 212 121 212 12

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