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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल ..’.. याद रहते हैं..’

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नज़ारे याद रहते हैं…..पुराने याद रहते हैं
कभी न भूल सकते पल सुहाने याद रहते हैं

सिलसिला निकल पड़ता है खर्चे का .. तीज त्योहारों
बचपने के कुल जमा …….चार आने याद रहते हैं

कहाँ याद करता है बात अच्छी… सौ दफा कह लो
कहें हों भूल से जो फ़क़त ….. ताने याद रहते हैं

नशे में डोल जाती मैक़दे की बोतलें साक़ी
मुझे बरबाद आंसू के खजाने याद रहते हैं

ज़ख्म दो चार मिलते हैं रिसा करते तमाम उम्र
चलो; अपने अक्सर किसी बहाने याद रहते हैं

ग़मों से है भरा सबका यहाँ जीवन.. समझ ”बंटी”
तुझे बस बेज़ुबाँ के.. कतलखाने याद रहते हैं
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रजिंदर सिंह छाबड़ा

1 Like · 280 Views
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