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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल..’..याद आई आज फिर..”

भूलना चाहूँ न भूलूँ याद आई आज फिर
चाँद निकला चांदनी भी शरमाई आज फिर

चमक जाती है तस्वीरे यार जेहन में मगर
याखुदा आँखे तेरी न मुस्कुराई आज फिर

सिल गए थे लब हमारे अब तलक हैं चुप हुए
उस घङी की वो फ़िज़ाएं खिलखिलाई आज फिर

आस वो या आमंत्रण वो समझ पाया न सनम
धड़कने घबरा गयी थी ; दी सुनाई आज फिर

ज़िंदगी से दूर हूँ जैसे समंदर रेत हैं
बांधने ”ब” गुरूर किसने है बिछाई आज फिर
================================
रजिंदर सिंह छाबड़ा

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