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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल .”खूबसूरत …लगा नहीं कोई”

—————————
चल सका सिलसिला नहीं कोई
मुसकाता…. मिला नहीं कोई

पहल करनी पडी.. मुझे पहले
हाथ आगे ….बढ़ा नहीं कोई

ताज के श्वेत संगमरमर सा
खूबसूरत …लगा नहीं कोई

आ गया तिरे मेरे बीच में
तीसरा था सगा नहीं कोई

आशियाँ जल उठा हमारा जब
बस्तियों में… जगा नहीं कोई

रूठ जाती सनम दिखे बंटी
गो बढ़कर ..सजा नहीं कोई
-*-*-*–*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-
रजिंदर सिंह छाबड़ा

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