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6 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल ( क्या जज्बात की कीमत चंद महीने के लिए है )

दर्द को अपने से कभी रुखसत ना कीजिये
क्योंकि दर्द का सहारा तो जीने के लिए है

पी करके मर्जे इश्क़ में बहका ना कीजिये
ख़ामोशी की मदिरा तो सिर्फ पीने के लिए है

फूल से अलगाब की खुशबु ना लीजिये
क्या प्यार की चर्चा केबल मदीने के लिए है

टूटे हैं दिल , टूटा भरम और ख्बाब भी टूटे हुये
क्या ये सारी चीज़े उम्र भर सीने के लिए हैं

वक़्त के दरिया में क्यों प्यार के सपनें वहे
क्या जज्बात की कीमत चंद महीने के लिए है

ग़ज़ल ( क्या जज्बात की कीमत चंद महीने के लिए है )
मदन मोहन सक्सेना

1 Comment · 435 Views
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