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24 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल- क़ाबिल तेरे नहीं हूँ मुझे ध्यान आ गया

ग़ज़ल- क़ाबिल तेरे नहीं हूं मुझे ध्यान आ गया
221 2121 1221 212
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अच्छा हुआ कि यार अभी ज्ञान आ गया
क़ाबिल तेरे नहीं हूँ मुझे ध्यान आ गया
~~~
मेरे बहुत हैं चाहने वाले जहान में
क्यूँ दिल दुखाने को कोई अनजान आ गया
~~~
वो तो बड़ा बेदर्द है, ज़ालिम है दोस्तों
मैंने जिसे माना कि है भगवान आ गया
~~~
जाकर कभी वो देख ले शमशान की तरफ
है हुश्न पे यहाँ जिसे अभिमान आ गया
~~~
मुझसे खफ़ा ‘आकाश’ भला क्यों हुआ है वो
क्या उसके जाल में नया इंसान आ गया

– आकाश महेशपुरी

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