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28 Jan 2017 · 1 min read

ग़ज़ल/गीत

22 22 22 22 वाचिक मापनी आधारित

काम करूँ तो काम न आये।
राम जपूँ तो राम न आये।

यह सोच वतन मेँ काम करूँ।
मुझ पर तो इल्जाम न आये।

थक जाऊं चल चल कर मैं।
क्या करूँ फिर भी मुकाम न आये।

जिस दिन याद न आओ मुझको।
रब दी सो वो शाम न आये।

राह गुज़र होती कब तन्हा।
साथ बिना आराम न आये।

मेरी मोहब्बत मुफ़्त बिकी।
दिल तो गया पर दाम न आये।

मुक्तक कविता और रुबाई ।
दिल को तसल्ली काम न आये।

जीस्त कटी सजदे में सारी।
लेकिन रूबरू श्याम न आये।

कागज़ ख़ाली ख़ाली मिलते।
हाले दिल पैगाम न आये।

सज़दे कर कर के खलास हुए।
फिर भी उनके सलाम न आये।

दीप शिखा मानिन्द जला दिल।
दिल में बसे गुलफाम न आये।

मिलने को मिल जाते ‘मधु’ सब।
मिलने को गुमनाम न आये।

*****मधु गौतम

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