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23 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल/गीतिका

जो कुछ चाहिए सब बराबर रखा है
मधुर मंजु चीजें सजाकर रखा है |

तुम्हारी कसम है, हो तुम ही सहारा
विगत पल की यादें, बचाकर रखा है |

न है यह ज़माना हमारा तुम्हारा
न इज्जत मिला, दिल में पत्थर रखा है |

अपाहिज बराबर हुई है रहाई
अनंग की व्यथा को वहन कर रखा है |

पिला साकिया मुझको थोड़ी सी मदिरा
अधर सुखा, दिल में समंदर रखा है |

©कालीपद ‘प्रसाद’

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