ह्रदय की कसक

मन खिल उठता है जब आप साथ होते हो
या तब भी जब उपवन से गुज़रती हूं चुप चाप, बिना आपके आने की आस लिए।
जब आप पास भी ना हों और उम्मीद भी हो बहुत ज़्यादा आपके आने की,
या
फिर आप आयो तो
मगर चुपके से निकल जायो
कुछ पलों बाद
मोबाइल की एक रिंग बजने पर, यह कह कर कि काम बहुत ज़रूरी है,
ऐसे पलों की कसक बहुत होती है मन में,
जैसे अचानक कोई खंजर चुभ गया हो तन में।
मैंने सुना है तुम बहुत माहिर माने जाते हो
अपनी आर्गेनाइजेशन में,
सीखने सिखाने की तरकीबों में,
उस पल की कसक सहने की मुझे भी तो कोई तरकीब सिखा दो !!
अभी मैं ज़िंदा रहना चाहती हूँ कुछ रोज़ और,
तुम्हें कसम है तुम्हारे पहले वादे की,
तुम चले जाया करो,
पर
ऐसे पलों की कसक का कोई तो तोड़ बता दो !
डॉ राजीव
चंडीगढ़।