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1 Apr 2022 · 1 min read

हो पाए अगर मुमकिन

तुम मेरी ख़ताओं की ख़ुद को न सज़ा देना
हो पाए अगर मुमकिन तो मुझको भुला देना

मैं याद अगर आऊं , रातों के अंधेरों में
तुम ग़म न मेरा करना , अश्कों को हटा देना

बेताब निगाहें कल , ढूंढेंगी मुझे लेकिन
बेताब निगाहों को , मेरा न पता देना

जज़्बात के जिन शोलों से ख़ाक हुआ हूं मैं
जज़्बात के उन शोलों को तुम न हवा देना

इक जन्म नया लेंगे सौ बार मिलेंगे फिर
तब तक के लिए मेरा हर नक़्श मिटा देना

… शिवकुमार बिलगरामी

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