सवालों के घेरे में तुम्हें रख रहें हैं वृध्द माता-पिता
यह कैसी सृष्टि की रचना की है विधाता
तुने उसके जीवन में क्या लिखा था विधाता
मुझे यह तेरा रुप समझ में नहीं आता।
दो वर्षो से कोरोना ने कहर ढ़ाया है
किसी के पिता
किसी की माता
किसी की पति
किसी की पत्नि
किसी भाई-बहन को
इस कोरोना ने सदा के लिए
अपने आगोश में लेकर
उनके जीवन से बिछुड़वाया है।
मान लिया मैनें
हे विधाता
काल ने कर्मो का दंड उन्हें दिया होगा
“मौत” की आगोश में काल ने उन्हें लिया होगा।
अब तो कोरोना का कहर कम हो गया है
अब तो कोरोना यहाँ से वापस जा चुका है
फिर क्यों?
फिर क्यों?
वही सड़क दुर्घटना
वही आत्महत्या
वही अपराध क्यों बढ़ रहा है?
यह मानव
अपने “मौत” के साथ
अपना कफन
साथ लिये चल रहा है
यह मानव
अपनों से सदा के लिए बिछुड़ रहा है।
हे विधाता
वह नन्हा सा बच्चा
बड़ी मासूमियत से
पापा आ रहें हैं
पापा चाकलेट ला रहें बोलकर
पापा का इन्तजार कर रहा है।
उसके वृद्ध माता-पिता
और
उसकी पत्नि
अपने बेटे की
अपने पति के कई घंटो से इन्तजार कर रहे हैं
अपने दरवाजे से बाहर की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं।
वे सभी
हे विधाता तुमसें सवाल कर रहें
कब आएँगे वो
कब आएँगे वो
बस इसी सवालों के घेरे में
तुमकों सदा के लिए रख रहें हैं।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)