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31 Jan 2023 · 1 min read

हे देश मेरे महबूब है तू,

हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे ही इश्क़ लगाया है।
तेरी खातिर कितनी बार लड़ा,
सरहद पर लहू बहाया है।

नदियों पर्वत से है प्यार मुझे,
वन लगते जिगरी यार मुझे।
खलिहान खेत में जब घूमूं,
बाहें फैलाये मैं झूमूँ।
आगोश में तेरे मस्त हुआ,
जब भी सागर लहराया है।
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे ही इश्क़ लगाया है।

इसमें वीरों की करनी है,
बलिदानों की ये धरनी है
दुनिया भर में सम्मान तेरा,
हिन्दोस्तां तू है जान मेरा।
सीना चौड़ा हो जाता जब,
ध्वज तीन रंग फहराया है।
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे ही इश्क़ लगाया है

आरती स्तुती का गान कहीं
अरदास में सत श्री अकाल कहीं।
मस्जिद में भोर अजान कहीं,
गिरजाघर मोम प्रकाश कहीं।
सब में है दिखता नूर एक,
सब में तेरा प्रेम समाया है।
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे ही इश्क़ लगाया है।

तू नहीं महज भूखण्ड एक,
भारत तू राष्ट्र अखण्ड एक।
हर नदी है सुरसरि सी पावन,
सब विरवे उपवन मनभावन।
कण कण में हरि का वास दिखे,
हर पत्थर शम्भु समाया है।

हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे ही इश्क़ लगाया है।

सतीश सृजन लखनऊ

Language: Hindi
157 Views
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