हे कलयुग के भक्तों
प्रवचनकर्ता प्रवचन कर रहे हैं
श्रोतागण प्रवचन का मजा ले रहे हैं
भजन – गीत में श्रोता नाच रहे
भगवान् की कथा सुन रहे।
कुछ समय बाद
आधे श्रोता ऊँघ रहे
आधे श्रोता चुगली में मस्त रहे
कोई फोन में बातें कर रहे
एक – दूसरे में व्यस्त रहे
इस तरह —–
सुन न सुन न उसे देख
वह कितनी महँगी सूट पहनी है
पूरे दस हजार की होगी
हाँ हाँ धीरे बोल कहीं वह सुन न ले
उसे देख उसे देख
वह कितनी महँगी हार पहनी है
पूरे दस लाख की होगी
हाँ हाँ मालूम है उसके पति
रिश्वत लेता है
अरे सुन तो उसकी लड़की भाग गई है
सुन तो आज क्या सब्जी बनाई है
आदि – आदि —–
अब प्रवचन आखिरी आया
प्रवचनकर्ता पूछते हैं
हे देवी आज तुमने क्या सीखा
आज तुमने क्या सुना
हाँ हाँ महराज
उसकी लड़की भाग गई
उसने आलू भिंडी की सब्जी बनाई
उसने मँहगा सूट है पहना
उसने मँहगा गहना है पहना।
मैनें तो यह कथा नहीं सुनाया
फिर कैसे?
प्रवचनकर्ता बोले
हे मेरे कलयुग के भक्तों
हे देवियों
यहाँ पर आए हो कथा सुनने
चुगली करना बंद करो
कुछ समय तो भगवान
का भजन कर लो
मैं मेरी बात नही करता
मैं भगवान की कथा सुनाता हूँ
एक पल भगवत – भजन
का श्रवण कर लो
चुगली करना हो
यहाँ मत आइए
अपनी उपस्थिति यहाँ
दर्ज न कराइए।
तुम्हारी यह निंदा प्रवृत्ति
बढ़ती जाएगी
एक दिन तुम्हारे जीवन में
यह निंदा भारी पड़ जाएगी।।।
राकेश कुमार राठौर
चाम्पा (छत्तीसगढ़)