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18 Aug 2021 · 1 min read

हूक

एक हूक उठती है
उठ उठ दीपक लौं सदृश गिरती

जानते हो तुम ! वो क्या है
फरवरी माह का भीना प्रणय स्पर्श
याद तुमको भी तो आता होगा
सुषुप्त यादें जगाता होगा
कुछ हल -चल , कुछ मुस्कान
बीच अपने घटित वे आख्यान
कुछ कहे कुछ अनकहे कहती

फिर वो हूक जगती है
उठ उठ दीपक लौं सदृश गिरतीं है

हूक में आ सर्वस्व अर्पण करना
दिल तुमको समर्पित करना
शनै -शनै दूरियों का घटाना
ख्यावों में तुमको गुलाब देना
फिर तुमको प्रपोज कर देना
नैन में सलोने स्वप्न सजाना
वो हूक अब भी बरकरार है
जो मनोभावों में खिलती है

फिर वही हूक उठती है
उठ उठ दीपक लौं सदृश गिरती

तब से अब तक का सफर
मैंने और तुमने किया कवर
चाकलेटी सिंहरन रगों में खेलती
टेडी बन कर बिफरती , मचलती
वो उम्र की हूक नहीं तो और क्या थी
तुम्हारे चेहरे के आयने में सजती है
बन्द आँखों में नव ख्याल बन सँवरती

फिर वही हूक उठती है
उठ उठ दीपक लौं सदृश गिरती है

अधरों पर तबस्सुम निखरते
तभी कर बैठे एक दूजे से प्रोमिस डे
छुपे से आकर तुम्हारा किस करना
यूँ तेरा गले लगना और निहारना
सच कितना मधुर सफर सात से चौदह का
वैलेंटाइन वीक में मधु याद ललकती
आज वही हूक देख तुझको सिसकती है

फिर वही हूक उठती है
उठ उठ दीपक लौं सदृश गिरती है

Language: Hindi
Tag: कविता
77 Likes · 1 Comment · 457 Views

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