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30 May 2023 · 1 min read

हिज़्र

कमबख़्त बेरुख़ी….. देखो यार कर रहा है ।
हिज्र भी…. ज़ेहनोदिल पर वार कर रहा है ।।

दिन , लम्हें , साल गुज़ार दिए याद में लेकिन ।
इंतज़ार आज भी उनका इंतज़ार कर रहा है ।।

मिरे जज़्बात को लफ़्ज़ नहीं मिलते लेकिन ।
ख़ामुश दिल भी मिरा…. इज़हार कर रहा है ।।

उनके ज़ेहन में अक़्स नहीं मिरा ” वासिफ़ “।
ख़्याल क्यूँ ये मुझे………. बीमार कर रहा है ।।

©डॉ वासिफ़ काज़ी, इंदौर
©काज़ी की कलम

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