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6 Oct 2016 · 1 min read

हास्य -व्यंग्य कविता

हास्य -व्यंग्य कविता
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एकवार B.Ed.में हमारा भी गया टूअर,
Cultural Programms में हम बड़े हो थे poor।
कुछ देरबाद हमारा भी नम्बर आया ,
हमने भी बेसुरी आवाज़ में एक गीत गुनगुनाया।
इतने में न जाने कहीं से एक गधा आया ,
हमारी आवाज़ सुनकर वो भी हिनहिनाया।
हमने कहा अबे गधे !हमारी आवाज़ में क्यों हिनहिना रहा है,
वो बोला हमारी आवाज़ में क्यों गुनगुना रहा है।
हमने कहा हम इंसान हैं तू हमारी तरह नकल मत कर,
वो बोला हम भले ही गधा हैं पर तू हमारी तरह शकल मत कर।
हमने कहा तू जानवर है और जानवर ही रह,
वो बोला भले ही तू इंसान है पर ऐसा मत कह।
हम जानवर होकर भी इंसान से बेहतर हैं ,
इंसान होकर भी भ्रष्टाचारी चोर रिश्वती आज के नर हैं ।
इंसान के इंसान होने से फायदा क्या है,
इंसान के कुकृत्यों से शर्मनाक ज्यादा क्या है।
हमारा इंसान को समर्पित होता कतरा-कतरा है,
इंसान इंसान और हम जानवरों के लिए भी खतरा है।
इंसान के कुकृत्यों से पृथ्वी भी शर्मशार है,
इंसान का मानव जाति के लिए भी नहीं प्यार है।
बास्तव में इंसान सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी ,
सम्पूर्ण सृष्टि हमेशा से इंसान की ऋणी है।
इंसान से होना चाहिए सभी का उपकार है,
तभी हो सकता सभी का उद्धार है।
इंसान होकर इंसानियत की वात कीजिए ,
अब वापस जाओ यहीं मत रात कीजिये ।
हमने बड़ी ही कृतज्ञता से गधे को धन्यवाद दिया ,
इस तरह बेसुरी आवाज़ में अपना गीत पूरा किया ।
रचयिता -डाँ0 तेज स्वरूप
भारद्वाज

Language: Hindi
1378 Views
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