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13 May 2022 · 5 min read

*हास्य-रस के पर्याय हुल्लड़ मुरादाबादी के काव्य में व्यंग्यात्मक चेतना*

*हास्य-रस के पर्याय हुल्लड़ मुरादाबादी के काव्य में व्यंग्यात्मक चेतना*
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हास्य-रस के पर्याय हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म यद्यपि अविभाजित भारत के पाकिस्तान के गुजरांवाला क्षेत्र में 29 मई 1942 को हुआ था लेकिन बंटवारे के दौर में ही वह मुरादाबाद आ गए और यहीं पर उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई । मुरादाबाद के ही एस.एस. इंटर कॉलेज तथा आर. एन. इंटर कॉलेज में उन्होंने 1970 – 71 तथा 1971 – 72 में अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएँ दीं। इस तरह मुरादाबाद और हुल्लड़ मुरादाबादी एक दूसरे के पर्याय हो गए।
1979 में अपनी प्रतिभा को एक नया आकाश स्पर्श कराने के लिए वह मुंबई गए । मुंबई ने हुल्लड़ मुरादाबादी के लिए सचमुच अखिल भारतीय ख्याति के दरवाजे खोल दिए । लेकिन दस साल साल मुंबई में रहकर 1989 में उन्हें पुनः मुरादाबाद में आकर रहना पड़ा । दस साल बाद वह फिर सन 2000 में मुरादाबाद छोड़कर मुंबई शिफ्ट हो गए और फिर आखरी साँस तक ( निधन 12 जुलाई 2014) मुंबई के हो कर रहे ।
हुल्लड़ मुरादाबादी ने जो राष्ट्रीय ख्याति हास्य के क्षेत्र में प्राप्त की ,वह अभूतपूर्व थी । उनके मंच पर पहुँचने का अर्थ कवि सम्मेलन के जमने की गारंटी होता था। काव्य-पाठ का उनका अंदाज निराला था । शब्द वह अपनी गति से रवाना करते थे और वह सीधे श्रोताओं के हृदय को गुदगुदा देते थे। शब्दों का चयन और प्रस्तुतीकरण लाजवाब था । उनका हास्य सरल रहता था, श्रोताओं के मनोरंजन की दृष्टि से परोसा जाता था और साधारण श्रोता से लेकर बड़े-बड़े नामचीन लोगों को हँसाने में कभी नहीं चूकता था। हास्य कवि में जो हँसाने का मौलिक गुण अनिवार्य होता है ,वह हुल्लड़ मुरादाबादी में कूट-कूट कर भरा था । कई बार उन्होंने ऐसी कविताएँ अथवा गद्यात्मक प्रस्तुतियाँ कवि सम्मेलन के मंच पर दीं, लाजवाब प्रस्तुतीकरण के कारण जिनकी गूँज हास्य की दुनिया में उनके न रहने पर भी शताब्दियों तक बनी रहेगी ।
मंच पर सफल होने का एक बड़ा दबाव मंचीय कवि के ऊपर रहता है । हुल्लड़ मुरादाबादी भी इसके अपवाद नहीं रहे । दुनिया को हँसाने के चक्कर में उनकी श्रेष्ठ व्यंग्यात्मक प्रतिभा पृष्ठभूमि में छिप गई। प्रारंभ में वीर-रस की सुंदर कविताएँ उन्होंने लिखी थीं। लेकिन फिर बाद में केवल और केवल हास्य के दायरे में अपना सिक्का जमा लिया । इन सब से फायदा यह हुआ कि हिंदी जगत को हास्य रस के प्रस्तुतीकरण की एक अनूठी शैली मिल गई लेकिन नुकसान यह हुआ कि हुल्लड़ मुरादाबादी का चिंतक और व्यंग्यात्मक प्रतिभा का कवि उभरने से वंचित रह गया।
हुल्लड़ मुरादाबादी ने यद्यपि कुछ कुंडलियाँ भी लिखी हैं लेकिन गजलों में उनके भीतर के व्यंग्यकार का शिल्प खुलकर सामने आया है । इनमें सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र के अनेक चित्र पैनेपन के साथ उभर कर सामने आते हैं । नेताओं की कथनी और करनी के दोहरेपन को उन्होंने गजल के अनेक शेरों में अभिव्यक्त किया है । विशेषता यह है कि इन को समझने में और इनकी तह तक पहुँचने में किसी को जरा-सी भी देर नहीं लगती । यह श्रोताओं के साथ सीधे संवाद कर सकने की उनकी सामर्थ्य को दर्शाता है । कुछ ऐसी ही पंक्तियाँ प्रस्तुत करना अनुचित न होगा

*दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटों के लिए*
*इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेड़िया हो जायगा*

*धोती कुर्ता तो भाषण का चोला है*
*घर पर हैं पतलून हमारे नेता जी*

*इनके चमचे कातिल हैं पर बाहर हैं*
*कर देते हैं फून हमारे नेता जी*

*किसी बात पर इनसे पंगा मत लेना*
*रखते हैं नाखून हमारे नेता जी*

धोती-कुर्ता को सात्विकता तथा पतलून को विलासिता और विकृतियों के संदर्भ में प्रयोग करने में जो अर्थ की तरंग उत्पन्न हुई है ,वह अद्भुत है । नेताओं की हाथी के दाँत खाने के और ,दिखाने के और वाली उक्ति भी शेर में चरितार्थ होती है।
जीवन में हँसने और मुस्कुराने के लिए हुल्लड़ मुरादाबादी की प्रेरणाएँ उनके काव्य में यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं। समस्याओं के बीच भी वह मुस्कुराते रहने का ही संदेश देते रहे :-

*जिंदगी में गम बहुत हैं, हर कदम पर हादसे*
*रोज कुछ टाइम निकालो मुस्कराने के लिए*

सम्मान-अभिनंदन आदि की औपचारिकताओं की निरर्थकता को अनेक दशकों पहले हुल्लड़ मुरादाबादी ने पहचान लिया था । इसके पीछे का जो जोड़-तोड़ और तिकड़मबाजी का अमानवीय चेहरा है, उसी को उजागर करती हुई उनकी दो पंक्तियाँ देखिए कितनी लाजवाब हैं:-

*मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का*
*मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए*
संसार में सब कुछ नाशवान और परिवर्तनशील है, इस गहन सत्य को कितनी सादगी से हुल्लड़ मुरादाबादी ने एक शेर में व्यक्त कर डाला ,देखिए:-

*नाम वाले नाज मत कर, देख सूरज की तरफ*
*यह सवेरे को उगेगा, शाम को ढल जायगा*

जीवन में सुख-दुख तो सभी के साथ आते हैं। कुछ लोग दुखों से घबरा जाते हैं और हार मान लेते हैं । ऐसे लोगों को हुल्लड़ मुरादाबादी ने समझाया कि संसार में बड़े से बड़े व्यक्ति को भी दुख का सामना करना पड़ता है । यह समझाने की हुल्लड़ मुरादाबादी की हास्य की एक विशिष्ट शैली है । आप भी आनंद लीजिए :-

*दुख तो सभी के साथ हैं, घबरा रहा है क्यों?*
*होती है मरसीडीज भी पंचर कभी कभी*
उपरोक्त पंक्तियों में मर्सिडीज में पंचर वाली बात ने हास्य की दृष्टि से व्यंग्य में चार चाँद लगा दिए ।
अमीरों की दुनिया में बच्चों के नसीब में माँएँ नहीं होतीं। वह “आया” की गोद में पलते हैं। इस विसंगति को अपने एक शेर के माध्यम से हुल्लड़ मुरादाबादी ने व्यक्त किया है। कहने का ढंग थोड़ा हास्य का है लेकिन इसमें से व्यंग्य की मार्मिकता ही चुभती हुई बाहर आ रही है । देखिए :-

*मार खाके सोता है रोज अपनी आया से*
*सबके भाग्य में माँ की, लोरियाँ नहीं होतीं*

अनेक बार देखा गया है कि जो लोग आदर्शों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं ,वह व्यावहारिक जीवन में असफल रह जाते हैं । सिवाय खालीपन के उनकी जेबों में कुछ नहीं रहता। यद्यपि वह उसी में प्रसन्न हैं और उन्हें कोई शिकायत नहीं है । इस स्थिति को हँसते- हँसाते हुए हुल्लड़ मुरादाबादी ने एक शेर के माध्यम से संपूर्णता में चित्रित कर दिया है। कवि की सफलता पर दाद दिए बिना नहीं रहा जा सकता।

*क्या मिलेगा इन उसूलों से तुझे अब*
*उम्र-भर क्या घास खाना चाहता है ?*

कुल मिलाकर हुल्लड़ मुरादाबादी काव्य के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके लेखन के मूल में व्यंग्य ही था । यद्यपि उन्हें ख्याति हास्य कवि के रूप में ही प्राप्त हुई और वही उनके जीवन की मुख्यधारा बन गई । अंत में उनकी लेखकीय क्षमता को प्रणाम करते हुए एक कुंडलिया निवेदित है:-
*श्री हुल्लड़ मुरादाबादी 【कुंडलिया】*
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कहने की शैली रही ,हुल्लड़ जी की खास
पहुँचा कब है दूसरा ,अब तक उनके पास
अब तक उनके पास ,गजल का रूप सुहाना
चिंतन – राशि सुषुप्त ,हास्य जाना-पहचाना
कहते रवि कविराय , हुई मुंबइ रहने की
शहर मुरादाबाद ,कला चमकी कहने की
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*लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 99976 15451*

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