हाँ, मैं तुमसे ———– मगर ———

हाँ, मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ ,
मगर नहीं चाहता तुम्हारी बर्बादी,
और जमाने में तुम्हारी बदनामी मैं,
सिर्फ़ मेरी वजह से दोस्त,
खत्म होते हुए देखना नहीं चाहता,
मेरी वजह से तेरा नाम और तेरा परिवार।
हाँ, मैं तुमसे बहुत मोहब्बत करता हूँ,
मगर मैं नहीं चाहता कभी,
तेरी आँखों से गिरते हुए आँसू ,
तुम्हारे माँ- बाप को रोते हुए,
और नहीं हो वजह से ऐसा,
कि तुम जी नहीं सके कल,
समाज में सिर ऊंचा करके,
इस प्यार के कारण।
हाँ, मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ,
मगर मैं नहीं चाहता कभी,
कि तुमको गुजारना पड़े जीवन,
गर्दिश, फकीरी और मुफलिसी में,
खत्म हो जाये शान्ति घर में,
बन जाये सभी हमारे दुश्मन,
सिर्फ गम और दर्द हो जीवन में,
मैं तो चाहता हूँ अपनी खुशी,
और यही आरजू है मेरी।
हाँ मैं तुमसे ————– मगर —————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)