हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी

हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी,
मेरे सफर की डगर थी,
मेरी डगर की मंजिल थी,
क्योंकि बनाया था तुमको ही,
मैंने अपने लक्ष्य की मंजिल,
सिर्फ तुम्हारा ही था ख्याल,
हरवक्त मेरे दिलो-दिमाग में,
और रहता था तेरा ही नाम,
मेरे लबों पर हमेशा,
और किया था मैंने प्रण,
सब कुछ तुम्हारे नाम करने का,
हाँ, इतना ही था तेरा दीवाना मैं।
हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी,
विश्वास नहीं हो तो देखना कभी,
मेरे उन खतों और गीतों को,
जो लिखे थे तुम्हारे लिए,
तुमसे प्यार और खुशी पाने के लिए,
तेरी आँखों में मेरा ख्वाब देखने के लिए,
तुमसे सम्मान और विश्वास पाने के लिए,
तुम्हारा मेरे प्रति वहम मिटाने के लिए,
तुमसे सम्मान पाने के लिए।
हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी,
मगर तुमने किया विश्वासघात,
मेरी उम्मीदों और मोहब्बत का खून,
मेरे सपनों के साथ मजाक,
मेरी बर्बादी के लिए प्रार्थनाएं
और अब यदि मैं करता हूँ,
तुमसे दिल से इतनी नफरत,
तो इसमें कसूर किसका है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)