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8 Feb 2024 · 1 min read

हर शेर हर ग़ज़ल पे है ऐसी छाप तेरी – संदीप ठाकुर

हर शेर हर ग़ज़ल पे है ऐसी छाप तेरी
तस्वीर बन रही है इक अपने आप तेरी

माहौल ख़ुशनुमा था मंज़र थिरक रहे थे
तबले पे पड़ रही थी जब तेज़ थाप तेरी

पाज़ेब पहने कोई सीढ़ी उतर रहा है
ज़ीने से आ रही है फिर मुझ को चाप तेरी

ग़ुस्से में तू ने उस को जाने को कह दिया पर
हर साँस कर रही है अब पश्चाताप तेरी

ऑफ़िस की फ़ाइलों को निप्टा के शाम बोली
ऐ दिन थका रही है ये आपाधाप तेरी

तेरे लिए किसी को इतना दीवाना देखा
लगने लगी है मुझ को चाहत भी पाप तेरी

आई थी सज सँवर के इक शाम तुझ से मिलने
चुप-चाप लौटती है ख़ामोशी भाप तेरी

संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur

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