हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,

हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,
जमाना कभी-कभी परिंदे का सुरूर तोड़ देता है
लाख कोशिशें करना तुम हस्ती मेरी मिटाने की
मेघ आने से कब दिनकर निकलना छोड़ देता है
कवि दीपक सरल
हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,
जमाना कभी-कभी परिंदे का सुरूर तोड़ देता है
लाख कोशिशें करना तुम हस्ती मेरी मिटाने की
मेघ आने से कब दिनकर निकलना छोड़ देता है
कवि दीपक सरल