हरी

करले तू याद नहीं तो पछताएगा
लेले उस का नाम तो उतर जाएगा
मानस तन तूने पाकर ये पाप कमाए है
जपले तू उस हरी को सुमिरन जिसका करते है
पिजरे में है तू बंदे “आलोक” समझ तू लेना
जिस दिन आजाद हो जाए फिर नहीं है कोई ठिकाना
वहा तेरा कोई धन ना काम आएगा
करले तू याद नहीं तो पछताएगा
लेले उस का नाम तो उतर जाएगा
✍️आलोक वैद “आज़ाद”
एक छोटा सा कवि एवम लेखक