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26 Nov 2022 · 1 min read

हरी भरी थी जो शाखें दरख्त की

हरी भरी थी जो शाखें दरख्त की
झूलते थे परिंदों के ख्वाबों के आशियाने जहां
कट रही है आज वो

आशियाना छिना गया, वीरान फिर मंजर हुए
बच गए तो वो बेजुबां हयात, जो अब बेघर हो गए

इंसानी उफ़्ताद ने ऐसा कोहराम मचाया
हर ओर विरानियां मुसल्ल्त है, दहसत का है साया।

– सुमन मीना (अदिति)

Language: Hindi
3 Likes · 182 Views
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