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11 Nov 2022 · 1 min read

हरि चंदन बन जाये मिट्टी

खेतों में अन्न उगाये मिट्टी
हरि चंदन -सी बन जाये मिट्टी

ये नाच नचाये सारा जीवन
यूँ खेल तिलिस्म रचाये मिट्टी

अब पावन रूप नया गढ़ने को
नित ही कुम्हार तपाये मिट्टी

बेबस दर-दर की ठोकर खाये
माथे पर धूल उड़ाये मिट्टी

हर शय करता आघात यहाँ पर
भाई-भाई लड़वाये मिट्टी

अब तान रही शमशीर सियासत
लालच के गर्त डुबोये मिट्टी

जो दूर बसे गाँवों में जाकर
अपनों के संग मिलाये मिट्टी

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
11/10/2022
वाराणसी ,©®

Language: Hindi
75 Views

Books from Dr. Sunita Singh

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