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13 Jan 2023 · 1 min read

हरि घर होय बसेरा

रहे सन्तुलन सुख और दुख में
न बनें कभी निराश।
एक भरोसा एक बल
एक आश विश्वास।

मैं कूकुर दरबार का
पट्टा गले पड़ा।
मेरा ठाकुर मेरा मालिक,
निश दिन साथ खड़ा।

जो भी होता मेरे जीवन में,
होती उसकी मर्जी,
कभी न करूँ शिकायत उससे,
न भेजूं कोई अर्जी।

जाने कितने राजे होंगे,
आएंगे चले जाएँगे।
गर ठाकुर से विमुख रहे तो,
अंत समय पछतायेंगे।

अगर है सुख लेना अंदर का,
बाहर से रुख मोड़ों।
ध्यान करो सतगुर का मन से,
नाम से नाता जोड़ो।

चौबीस घण्टे नौबत बाजे
ठाकुर लागे प्यारा।
वाह्य भक्ति पीछे रह जाये,
अंदर हो उजियारा।

मानव देह दार हो जाए,
मकसद हल हो तेरा।
जीवन मरण का झंझट छूटे,
हरि घर होए बसेरा।

-सतीश सृजन, लखनऊ

Language: Hindi
1 Like · 42 Views
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