हम वर्षों तक निःशब्द ,संवेदनरहित और अकर्मण्यता के चादर को ओढ़

हम वर्षों तक निःशब्द ,संवेदनरहित और अकर्मण्यता के चादर को ओढ़े कुम्ह्करण बन गए थे नींद खुली तो देखा अपने पराये बन गए थे !@लक्ष्मण
हम वर्षों तक निःशब्द ,संवेदनरहित और अकर्मण्यता के चादर को ओढ़े कुम्ह्करण बन गए थे नींद खुली तो देखा अपने पराये बन गए थे !@लक्ष्मण