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19 Apr 2020 · 1 min read

हम तुम्हें बुलाने से रहे

घर मेरा फकीरों के बस्ती में था रास्ते पथरीले पुराने से रहे
तुम उस रास्ते चल के आने से रहे हम तुम्हें बुलाने से रहे

अनजाने ही सही तुम से इक अजब सा रिश्ता बना
तुम इस रिश्ते को सजाने से रहे हम इसे भुल जाने से रहे

इश्क नाम के दरिया में जज़्बात के फूल बेसाख्ता तैरते रहे
परवा नहीं तुम्हें जज्बातों का तो भला हम क्यूं बेपरवा से रहें

ये बस्ती है इश्क वालों कि यहां दिल में नाम ए यार के छाले रहते हैं
दिल में जब तुम रहते हो, तो बस्ती में हम तुम्हें बुलाने से रहे
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 1 Comment · 202 Views

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