हम एक है

ना पहचान दे मुझे
मेरे नाम से,
पहचान दे मुझे
मेरे ईमान से,
राम-रहीम तो बस चिन्ह है समाज के,
हम एक है,
बरसात की बूंद से…
निकले हैं हम बादलों से
आसमान को चीर कर
हरा-भरा करना है जमीन को
अपनी रूह से सींचकर
भूखों का पेट भरना है
छाया देनी है सभी को
भाप बनकर उड़ना है
बादल बनना है सभी को
जीवन के इसी चक्र का
हिस्सा हैं हम सभी,
कभी भाप से बादल तो
कभी बादल से बूँद बनते है सभी।
ना राम हमको तारेगा
ना कष्ट सहेगा खुदा कभी
कर्म ही हमारी जन्नत बनेगा
कर्म ही बनाएगा नर्क यहीं।
है आस्था
तो उसे आस्था ही रहने दो
विस्वास है विस्वास तक
अंधविस्वास ना बनने दो,
हम क्यों लड़े उसके लिए,
जो दिखता नही कभी,
लड़खड़ा कर गिरे जब राहों पर,
इंसान ही काम आया हर कहीं।
ना खून का रंग अलग है
ना अलग है बनाबट शरीर की,
चुभती है सुई शरीर में,
तो आँखें निचुड़ती है सभी की,
किस बजह से कहूँ,
तुम अलग हो मेरी रूह से,
जिंदा हो जैसे,
मरते हो वैसे ही….