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15 Aug 2016 · 1 min read

हम अपने आपकी किस्मत ख़राब लिखते हैं

कहीं अज़ाब कहीं पर सवाब लिखते हैं
फरिशते रोज़ हमारा हिसाब लिखते हैं

बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं इसी युग में
किताब पढ़ते नहीं हैं किताब लिखते हैं

वों अपने जिस्म के ख़ानों मे आग रखते हैं
गुलाब होते नहीं हैं गुलाब लिखते हैं

यहाँ के लोग तो ताबीर जानते ही नहीं
ये अपने नींद मे रहने को ख्वाब लिखते हैं

तुम्हारे ज़ुल्म तुम्हारे सितम नहीं लिखते
हम अपने आपकी किस्मत ख़राब लिखते हैं

– नासिर राव

1 Comment · 244 Views

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