हमने सच को क्यों हवा दे दी

हमने सच को क्यों हवा दे दी
सारा मोहल्ला दुश्मन हो बैठा
क्या हो जाता जो रात को दिन कहता रहता
कुछ ही तो दोस्त थे वो भी खो बैठा
अंधों के शहर में आंखे बंद ही रखना
जिसने भी खोली वो रो बैठा
तूँ कुछ ना देख कुछ ना सुन
तूँ दामन छुड़ा क्यों भिगो बैठा।
डॉ राजीव