हमने तो सोचा था कि

शीर्षक – हमने सोचा था कि तुम हो
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हमने सोचा था कि तुम हो, जिंदगी की खुशी।
ख्वाब सच होंगे तुमसे, होगी जिंदगी में हंसी।।
हमने सोचा था कि——————-।।
वैसे तो यहाँ पे हजारों, मिलते हैं चेहरे हमको।
देते हैं प्यार हमें वो, चाहते हैं वो बहुत हमको।।
तुम मगर इनसे अलग हो, और दिल से भी हसीं।
हमने सोचा था कि ————————।।
हमको मतलब क्या किसी से,तुम हो माहताब हमारे।
रोशनी तुम हो हमारी, हमसफर तुम हो हमारे।।
हमने देखा था तुम्हीं में, चमकता अपना नसीं।
हमने सोचा था कि ———————–।।
तुम मगर वैसे नहीं हो, जैसा सोचा था हमने।
कैसे एतबार हो तुम पर, दिया ही क्या है तुमने।।
नहीं तुम वैसे पवित्र, और सूरत वह भी नहीं।
हमने सोचा था कि ————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)