हमदर्द हो जो सबका मददगार चाहिए।

गज़ल
221…..2121…..1221….212
हमदर्द हो जो सबका मददगार चाहिए।
सबका रखे जो ध्यान वो सरकार चाहिए।
सच्चाई को जो लाए भी दुनियां के सामने,
बतलाओ कोई ऐसा हो अखबार चाहिए।
महबूबा के जो दर्द हो महबूब रो भी ले,
वो आदमी भी इश्क में बीमार चाहिए।
हो काफिया रदीफ भी मतला व मक्ता भी,
ग़ज़लें लिखोगे आप तो अशआर चाहिए।
ले जाओ जिसको चाह हो दौलत ओ शोहरतें,
मुझको तो तेरा प्यार बेशुमार चाहिए।
मीनार भाई चारे की कुछ इस तरह बने,
टूटे न जो कभी भी वो दीवार चाहिए।
प्रेमी दिखेगा चैनो अमन ही हरिक तरफ,
नफ़रत को खत्म कर दें वो हथियार चाहिए।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी