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18 Mar 2023 · 1 min read

हक़

बस इतना सा एहसान करो,
चले जाना, फिर ना पलटना, लेकिन एक पल सुनो।

उन ख़ुश्बूओं को पास रखने का हक़ दे दो,
जो नज़दीक से गुज़रते वक़्त साँसों से टकरायी थीं,
उन शिकायतों को गले लगाये रहने दो,
जो वक़्त पर ना आने पर तुमने मुझे सुनायी थीं।

वो आधा मुरझाया किताब के पन्नों से चिपका पड़ा फूल,
जो लाइब्रेरी के एक कोने पर तुम दे गई थी चुपके से,
हर बार कहना अब और नही है मिलना,
अगली बार भी आते कदम कभी तेज़ कभी रुकते से।

तुम जला डालो वो सारे ख़त जो रात के नर्म अंधेरे में, मैं लिखता रहा था सुबह होने तक,
पर वो तुम्हारे दो आंसू गिर गये थे जो मेरे कंधे पर,
हक़ दे दो बस थामे रखने का उनकी गीली महक।

डॉ राजीव
चंडीगढ़

Language: Hindi
Tag: कविता
13 Views
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