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29 Aug 2022 · 1 min read

हँसते हैं वो तुम्हें देखकर!

जिनको ओस – ओस कहते हो,
वो फूलों की बत्तीसी हैं।
हँसते हैं वो तुम्हें देखकर।
हाँ, हाँ मानव! तुम्हें देखकर।

देव मनाने की इच्छा में,
तुमने युवा फूल मारे हैं।
मानव से भिक्षुक बन बैठे,
तुमको सुख इतने प्यारे हैं ?

जिनको निरा मूर्ख कहते हो,
वो ईश्वर के अन्वेषी हैं।
हँसते हैं वो तुम्हें देखकर ।

जीवों ने शिशुओं को जन्मा,
पाला, मोह बचाए रक्खा।
और एक मानव है जिसने,
सीने सूद लगाए रक्खा।

बेजु़बान सब बीस हो गए,
मानव अब तक उन्नीसी हैं।
हँसते हैं वो तुम्हें देखकर।

तुमको लगता सुविधाओं से,
तुमने जीवन जीत लिया है।
लेकिन मिलकर सुविधाओं ने,
अबके अर्जुन जीत लिया है,

विमुख हो रहे हो तुम जिनसे,
वो त्रेता के वनवेषी हैं।
हँसते हैं वो तुम्हें देखकर।
हाँ, हाँ मानव! तुम्हें देखकर।
© शिवा अवस्थी

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