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3 Aug 2021 · 1 min read

सफ़र जिन्दगी का

‘सफर जिन्दगी का’

न है तुझ से गिला कोई
न तुझसे है शिकायत कोई,
हर शख्स है बेगाना यहाँ
है न इस जहाँ में अपना कोई।
दूरियाँ ही अब नजदीकियां हैं
रहा न मेरा अफ़साना कोई,
धुआं-धुंआ जिन्दगी बन गई
गा रहा है कैसा तराना कोई।
उठा है दर्द जिगर में हर सू
लगा रहा है शायद निशाना कोई,
देखो रात उतर आई है दिल में
आकर चिराग जलाना कोई।
जाकर लिखेंगे ख़त तुम्हें
कहकर बना गया बहाना कोई,
कल बहुत इंतजार था हमें
कि आएगा उसका नजराना कोई।

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