स्वामी विवेकानंद
(स्वामी विवेकानंद की
जयन्ती पर विशेष)
स्वामी विवेकानंद
सजी थी उम्मीदें धरा पर
व्योम तक हुंकार भरना था..
चला वो युवा सन्यासी निकल कर
विश्व में वेदांत का आह्वान करना था..
राम कृष्ण के संधि की
शक्ति मिली थी..
हृदय में धर्म रक्षा की
भावना भरी थी…
मिला था भक्तिपद,
माँ काली के चरणों का..
पथ पर पथिक,
मन से नहीं निर्बल निरा था..
क्या पूरब क्या पश्चिम हर जगह ,
बिखरते मूल्यों की पीड़ा पड़ी थी..
भौतिकता में लिपटा था तन मन ,
आतुरता हृदय में,
आनन्द की आशा जगी थी..
सम्बोधन सुना जन जन ने,
जब यती हिंद जन की..
शिकागो के धर्मसभा में ,
बारम्बार तालियां बजी थी..
हुआ था शून्य का उद्घोष,
व्यापक अनंत मंडल में..
झूमा गगन भी अद्वैतदर्शन में,
मन आह्लादित हुआ था..
करें हम याद उस क्षण को,
करें अर्पित हम तन मन को..
जन जन के विवेक का स्वामी,
शत् शत् नमन तुझको..
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२/०१/२०२३
माघ,कृष्ण पक्ष,पंचमी ,गुरुवार
विक्रम संवत २०७९
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