स्वयंकोविश्वरूप संशयमुक्तजानकर:: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट१०८)
राजयोगमहागीता: घनाक्षरी
————————
स्वयंको विश्वरूप संशय मुक्त जान कर ,
आत्मरूप का स्वयं मान करना चाहिए ।
देह से असंग मैं यह देह मेरी है नहीं ,
देह का मोह न बखान करना चाहिए ।
मैं तो हूँ चैतन्य स्वरूप , न कि जीव रूप हूँ ।
किसी का भी न अपमान करना चाहिए ।
उसमें संतुष्ट रहो , जितना जीवन मिला ।
उतना पूर्णता से ध्यान करना चाहिए ।।
—– जितेंद्रकमलआनंद
रामपुर ( उ प्र )