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13 Aug 2021 · 1 min read

स्मृतियां….

आस की संध्या आती रही, दीप जलाकर
यामिनी बीती जाती रही, अश्रु बहाकर
मैं निर्निमेष कब तक निहारू, द्वार की चौखट
स्मृतियां सहलाती रही, घावों की धूल हटाकर…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

Language: Hindi
Tag: मुक्तक
6 Likes · 10 Comments · 440 Views
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