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16 Nov 2016 · 1 min read

स्तब्ध

छवियां तो
धूमिल
हो जातीं हैं
पर प्रेम समर्पण
अब देखा
अंतर्मन भी मौन हुआ
उसका ये अर्पण देखा
किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी
तकती आंखें ने
ये कैसा
मंज़र देखा
मेरे जैसा
न मुझमें कुछ है
कैसा ये
दर्पण देखा।

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 201 Views

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