सुकून सा ऐहसास…

तेरे बिना जीना कहाँ आया
नैनोमें तू ही तू छाया…!
बंध जो करली आँखे तो
मनमें तू आ बसा…!
देखे मन ख़्वाब तो
हर ख़याल में तू ही तू आया..!
हो गए अब तो परेशान
ये कैसा नशा छाया…!
चाहत की आरजू को
जहन में उस तरह फैलाया..!
धीरे धीरे मदहोशी जैसा
माहौल छा रहा…!
चाहते थे कुछ भी
क्यों… न हो…जाएं..
पर… रहेंगे होश में…!
पर….आखिर कार फँसे ऐसे
जैसे शिकारी के फंदे में
फँस जाता हैं कोई शिकार…!
अब शायद बच न सकेंगे
उम्मीदो को गंवा दिया…!
पर…फिर भी हैं सुकून सा ऐहसास
सबकुछ गंवाने के बाद भी
देखो हम तो जीत ही गए….!!!!!