सीमा पर जाकर हम हत्यारों को भी भूल गए

सीमा पर जाकर हम हत्यारों को भी भूल गए
बढ़ती उम्र के साथ हम यारों को भी भूल गए
शहरों में आकर के अब हम इतने मगरूर हुए
जिन पांवों में जन्नत थी उन पांवों को भूल गए
✍️कवि दीपक सरल
सीमा पर जाकर हम हत्यारों को भी भूल गए
बढ़ती उम्र के साथ हम यारों को भी भूल गए
शहरों में आकर के अब हम इतने मगरूर हुए
जिन पांवों में जन्नत थी उन पांवों को भूल गए
✍️कवि दीपक सरल