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27 Oct 2021 · 1 min read

सियासी चालें गहरी

एक चढ़े दूजा गिरे, फिर क्यों दोनों संग
एक रूप दो गोलियाँ, लाल-हरा इक रंग

लाल-हरा इक रंग, सियासी चालें गहरी
धर्म-कर्म का ढोंग, सभी इक जैसी ठहरी

महावीर कविराय, गिरे तो क़द आप बढ़े
वो सबमें सिरमौर, तख़्त पर जो एक चढ़े

***

3 Likes · 3 Comments · 345 Views

Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali

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